* बुद्ध कहते हैं कि- अतीत पर ध्यान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पर केंद्रित करो।
* जिसे जान-बूझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं, वह कोई भी पाप कर सकता है, इसलिए तू यह हृदय में अंकित कर ले कि मैं हंसी-मजाक में भी कभी असत्य नहीं बोलूंगा।
* ये लोग भी कैसे हैं। साम्प्रदायिक मतों में पड़कर अनेक तरह की दलीलें पेश करते हैं और सत्य और असत्य दोनों का ही प्रतिपादन कर देते हैं, अरे! सत्य तो जगत में एक ही है, अनेक नहीं।
* सत्यवाणी ही अमृतवाणी है, सत्यवाणी ही सनातन धर्म है। सत्य, सदर्थ और सधर्म पर संतजन सदैव दृढ़ रहते हैं।
* असत्यवादी नरकगामी होते हैं और वे भी नरक में जाते हैं, जो करके 'नहीं किया' कहते हैं।
* जिसे जान-बूझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं, उसका साधुपना औंधे घड़े के समान है। साधुता की एक बूंद भी उसके हृदय-घट के अंदर नहीं है।
* सभा में, परिषद में अथवा एकांत में किसी से झूठ न बोलें। झूठ बोलने के लिए दूसरों को प्रेरित न करें और न झूठ बोलने वाले को प्रोत्साहन दें। असत्य का सर्वांश में परित्याग कर देना चाहिए।
* हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो शांति लाएं।
* संतोष सबसे बड़ा धन है, वफादारी सबसे बड़ा संबंध है और स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है।- द आंबेडकरी चळवळ टीम
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